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Tuesday, May 30, 2017
Tuesday, May 23, 2017
"Australian iron ore magnate donates $300 million towards charity - The Hindu" & other top news
Wednesday, July 2, 2014
ये टिप्स अपनाकर रखें अपनी कार और पर्यावरण का ख्याल
वाहनों से निकलने वाले धुंए के चलते व्हीकल पर्टिक्यलट मैटर यानी पीएम उत्सर्जन भी खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इसके चलते भारत में हर साल 40 हजार लोग समय से पहले मौत का ग्रास बन रहे हैं। ऎसे में जरूरी है कि हमारी कार के साथ-साथ पर्यावरण की देखभाल करना भी हमारी आदतों में शुमार करना होगा। ज्यादा कुछ नहीं करना बस कुछ ऎसी चीजें करनी है। इन्हें अपनाक र हम ईको-फ्रेंडली रह सकते हैं और पृथ्वी को सुरक्षित रख सकते हैं। हम आपको बता रहे हैं कुछ ऎसे ही टिप्स जिन्हें अपनाकर आप अपने वाहन को पर्यावरण-हितैषी बना सकते हैं। तो आइए....
कार को करें मैनटेन
कार को ईको-फ्रेंडली रखने पहले नियम के अनुसार आप उसकी सेहत का पूरा खयाल रखें। कार की नियमित सर्विस करवाने से वह कम धुंआ उत्सर्जित करती है। कम धुंआं निकलने से पर्यावरण पर्यावरण को नुकसान कम पहुंचता है। कार को ट्यून करके उसकी क्षमता में 4 फीसदी तक का इजाफा किया जा सकता है, जबकि जाम एयर फिल्टर को बदलने से उसकी क्षमता में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाती है। वहीं एक खराब ऑक्सीजन सेंसर से कार का माइलेज 40 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
कार को ईको-फ्रेंडली रखने पहले नियम के अनुसार आप उसकी सेहत का पूरा खयाल रखें। कार की नियमित सर्विस करवाने से वह कम धुंआ उत्सर्जित करती है। कम धुंआं निकलने से पर्यावरण पर्यावरण को नुकसान कम पहुंचता है। कार को ट्यून करके उसकी क्षमता में 4 फीसदी तक का इजाफा किया जा सकता है, जबकि जाम एयर फिल्टर को बदलने से उसकी क्षमता में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाती है। वहीं एक खराब ऑक्सीजन सेंसर से कार का माइलेज 40 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
टायरों में हवा का रखें सही दबाव
यदि कार के टायरों में हवा का सही दबाव नहीं होने पर वे अधçक चक्र घूमते हैं जिसके चलते इंजन को अधçक काम करना पड़ता है। नतीजतन ईधन की खपत भी बढ़ जाती है। यदि कार के टायरों में हवा का दबाव सही है तो टायर लंबे समय तक चलेगें। इससें पैसों की बचत होने के साथ-साथ पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचेगा।
यदि कार के टायरों में हवा का सही दबाव नहीं होने पर वे अधçक चक्र घूमते हैं जिसके चलते इंजन को अधçक काम करना पड़ता है। नतीजतन ईधन की खपत भी बढ़ जाती है। यदि कार के टायरों में हवा का दबाव सही है तो टायर लंबे समय तक चलेगें। इससें पैसों की बचत होने के साथ-साथ पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचेगा।
बदलें ड्राइविंग का अंदाज
कार माईलेज काफी हद तक उसें चलाने वाले के अंदाज निर्भर करता है। कार को अचानक से रोकने-चलाने, आक्रामक होकर या झटके देकर चलाने से ईधन की खपत पर बहुत अधçक असर पड़ता है। इससें बचने के लिए कार चलाते समय एक्सीलेटर पर जरा हल्का पांव रखें साथ ही गियर भी आराम से बदलें। इसके अलावा यदि कहीं 30 सेकेंड से ज्यादा समय तक स्टॉप करना हो तो इंजन को बंद कर दें।
कार माईलेज काफी हद तक उसें चलाने वाले के अंदाज निर्भर करता है। कार को अचानक से रोकने-चलाने, आक्रामक होकर या झटके देकर चलाने से ईधन की खपत पर बहुत अधçक असर पड़ता है। इससें बचने के लिए कार चलाते समय एक्सीलेटर पर जरा हल्का पांव रखें साथ ही गियर भी आराम से बदलें। इसके अलावा यदि कहीं 30 सेकेंड से ज्यादा समय तक स्टॉप करना हो तो इंजन को बंद कर दें।
वजन कम रखें
आपकी कार जितनी भारी होगी यानि उसें जितना ज्यादा बोझा रखा होगा ईधन भी उसी हिसाब से खर्च होगा क्योंकि उसे खींचने के लिए उतने ही अधçक ईधन की जरूरत होगी। इसके लिए कार की केबिन और डिक्की में रखे बेकार के सामानों बाहर निकाल दें। इसके अलावा छत पर लगे कैरियर की जरूरत नहीं है तो उसें भी हटा दें।
आपकी कार जितनी भारी होगी यानि उसें जितना ज्यादा बोझा रखा होगा ईधन भी उसी हिसाब से खर्च होगा क्योंकि उसे खींचने के लिए उतने ही अधçक ईधन की जरूरत होगी। इसके लिए कार की केबिन और डिक्की में रखे बेकार के सामानों बाहर निकाल दें। इसके अलावा छत पर लगे कैरियर की जरूरत नहीं है तो उसें भी हटा दें।
कार धोने में करें कम पानी का इस्तेमाल
किसी भी कार को घर पर ही धोने में करीब 200 लिटर तक पानी की आवश्यकता होती है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कार को साफ करने या धाने में कम से कम पानी इस्तेमाल करें। जहां तक हो सके कार को पहले सूखे कपड़े से साफ करें। इसके अलावा कार को धोने में बायोडिग्रेबल और सीएफसी-फ्री डिटर्जेंट का इस्तेमाल करने की कोशिस करें। आजकल बाजार में ईको-फ्रेंडली क्लीनर भी मौजूद हैं।
किसी भी कार को घर पर ही धोने में करीब 200 लिटर तक पानी की आवश्यकता होती है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कार को साफ करने या धाने में कम से कम पानी इस्तेमाल करें। जहां तक हो सके कार को पहले सूखे कपड़े से साफ करें। इसके अलावा कार को धोने में बायोडिग्रेबल और सीएफसी-फ्री डिटर्जेंट का इस्तेमाल करने की कोशिस करें। आजकल बाजार में ईको-फ्रेंडली क्लीनर भी मौजूद हैं।
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Monday, December 23, 2013
खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण
खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण | |||||
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वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण से निपटने की ठोस रणनीति न होने का ही परिणाम है कि हर वर्ष लाखों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
हजारों लोग काल के शिकार बन रहे हैं. पिछले दिनों एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल के एक शोध से खुलासा हुआ है कि दुनियाभर में प्रदूषण से तकरीबन छब्बीस लाख लोगों की मौत होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट का अध्ययन बताता है कि इनमें से ज्यादतर मौतें दक्षिण और पूर्व एशिया में हुई हैं. आंकड़े बताते हैं कि हर साल मानवजनित वायु प्रदूषण से तकरीबन 4.7 लाख और औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं. शोध में कहा गया है कि अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो भविष्य में बड़ी वैश्विक जनसंख्या प्रदूषण की चपेट में होगी. वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने भी दूषित हवा को कैंसर का बड़ा कारण माना है जबकि अभी तक कैंसर के लिए तंबाकू और रेडिएशन को ही सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता रहा है.
शोध से यह भी खुलासा हुआ है कि भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं. उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है. 2010 में आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता और दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर हैं. आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2009 से 2011 के बीच फेफड़े के कैंसर के सबसे अधिक मामले दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में ही सामने आए हैं. सीएसई यानी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का आंकलन है कि देश में 2026 तक चौदह लाख लोग किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे.
शोध से यह भी खुलासा हुआ है कि भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं. उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है. 2010 में आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता और दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर हैं. आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2009 से 2011 के बीच फेफड़े के कैंसर के सबसे अधिक मामले दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में ही सामने आए हैं. सीएसई यानी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का आंकलन है कि देश में 2026 तक चौदह लाख लोग किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे.
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने सरकार को आगाह किया है कि वह प्रदूषण कम करने के लिए ठोस कदम उठाए. उन्होंने सुझाव दिया है कि हर शहर में वाहनों के लिए यूरो-4 नियम लागू करना चाहिए. लेकिन विडंबना है कि इसे लेकर सरकार अभी गंभीर नहीं दिख रही है. यह वैज्ञानिक तथ्य है कि जब भी वायुमंडल में गैसों का अनुपात संतुलित नहीं रह जाता है तब प्रदूषण की संभावना बढ़ जाती है. हाल के वर्षो में वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है. कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है. इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानों और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है. इनके जलने से सल्फरडाई ऑक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है.
भारत समेत दुनिया में हर दिन करोड़ों मोटरवाहन सड़क पर चलते हैं. इनके धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं. ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं. कारखानों और विद्युत गृहों की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईधनों का पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदुषण को बढ़ाता है. 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से विषैली गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुंह में चले गए और हजारों लोग अपंगता का दंश झेल रहे हैं. इसी प्रकार 1986 में अविभाजित सोवियत संघ के चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में रिसाव होने से लाखों लोग प्रभावित हुए. इन घटनाओं के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है.
वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. जब भी वर्षा होती है तो वायुमंडल में मौजूद विषैले तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मिट्टी को प्रदूषित कर देते हैं. अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. नार्वे, स्वीडन, कनाडा और अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं. अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रही है. यूरोप महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नष्ट हो चुके हैं. ओजोन गैस की परत को, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, वायुमंडल की दूषित गैसों के कारण काफी नुकसान पहुंचा है. इससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनी किरणों पृथ्वी पर पहुंचकर तापमान में वृद्धि कर रही हैं.
इससे न केवल कैसर जैसे रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी हुई है. नए शोधों से यह भी जानकारी मिली है कि जो गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषित क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिुशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है. यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्रॉस्पेक्टिव द्वारा नौ देशों में 30 लाख से ज्यादा नवजात शिशुओं पर अध्ययन से हुआ है. शोध के मुताबिक जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इनमें मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है. पिछले दिनों देश के 39 शहरों की 138 ऐतिहासिक स्मारकों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि शिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टयम और मदुरै जैसे विरासती शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक है. कुछ स्मारकों के निकट तो यह चार गुना से भी अधिक पाया गया. सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आसपास है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शहरों के स्मारकों के आसपास रासायनिक और धूल प्रदूषण की जानकारी के बाद भी उनके बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
ऐसा नहीं है कि प्रदूषण के इन दुष्प्रभावों से निपटने और उस पर रोकथाम के लिए कानून नहीं हैं. लेकिन सचाई यह है कि कानूनों का पालन नहीं हो रहा है. सरकार ने प्रदूषण में कमी लाने के उद्देश्य से तेरह बड़े शहरों समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चार पहिया और दो पहिया वाहनों के लिए भारत स्टेज-चार और भारत स्टेज-तीन उत्सर्जन नियम 2010 लागू किए. प्रदूषण में कमी लाने के लिए परिष्कृत डीजल और गैसोलिन की आपूर्ति बढ़ाई गई. साथ ही कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस यानी सीएनजी के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. दिल्ली के बाद देश के अन्य बड़े शहर भी मेट्रो ट्रेन लाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण तब लगेगा जब सरकार और आम लोग अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील होंगे.
भारत समेत दुनिया में हर दिन करोड़ों मोटरवाहन सड़क पर चलते हैं. इनके धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं. ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं. कारखानों और विद्युत गृहों की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईधनों का पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदुषण को बढ़ाता है. 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से विषैली गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुंह में चले गए और हजारों लोग अपंगता का दंश झेल रहे हैं. इसी प्रकार 1986 में अविभाजित सोवियत संघ के चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में रिसाव होने से लाखों लोग प्रभावित हुए. इन घटनाओं के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है.
वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. जब भी वर्षा होती है तो वायुमंडल में मौजूद विषैले तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मिट्टी को प्रदूषित कर देते हैं. अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. नार्वे, स्वीडन, कनाडा और अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं. अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रही है. यूरोप महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नष्ट हो चुके हैं. ओजोन गैस की परत को, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, वायुमंडल की दूषित गैसों के कारण काफी नुकसान पहुंचा है. इससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनी किरणों पृथ्वी पर पहुंचकर तापमान में वृद्धि कर रही हैं.
इससे न केवल कैसर जैसे रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी हुई है. नए शोधों से यह भी जानकारी मिली है कि जो गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषित क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिुशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है. यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्रॉस्पेक्टिव द्वारा नौ देशों में 30 लाख से ज्यादा नवजात शिशुओं पर अध्ययन से हुआ है. शोध के मुताबिक जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इनमें मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है. पिछले दिनों देश के 39 शहरों की 138 ऐतिहासिक स्मारकों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि शिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टयम और मदुरै जैसे विरासती शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक है. कुछ स्मारकों के निकट तो यह चार गुना से भी अधिक पाया गया. सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आसपास है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शहरों के स्मारकों के आसपास रासायनिक और धूल प्रदूषण की जानकारी के बाद भी उनके बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
ऐसा नहीं है कि प्रदूषण के इन दुष्प्रभावों से निपटने और उस पर रोकथाम के लिए कानून नहीं हैं. लेकिन सचाई यह है कि कानूनों का पालन नहीं हो रहा है. सरकार ने प्रदूषण में कमी लाने के उद्देश्य से तेरह बड़े शहरों समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चार पहिया और दो पहिया वाहनों के लिए भारत स्टेज-चार और भारत स्टेज-तीन उत्सर्जन नियम 2010 लागू किए. प्रदूषण में कमी लाने के लिए परिष्कृत डीजल और गैसोलिन की आपूर्ति बढ़ाई गई. साथ ही कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस यानी सीएनजी के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. दिल्ली के बाद देश के अन्य बड़े शहर भी मेट्रो ट्रेन लाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण तब लगेगा जब सरकार और आम लोग अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील होंगे.
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